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उसका दोष क्या है भाग - 10 15 पार्ट सीरीज

   
       उसका दोष क्या है (भाग-10) 

               कहानी अब तक 
   रमेश की शादी संगीता से हो जाती है,परंतु उसे वह दिल से अपना नहीं पाता। विद्या रमेश को याद कर बहुत दुखी रहती है।
             अब आगे 
शीला मैडम का क्लास खत्म होने के बाद  रमा विद्या को लेकर कैंटीन की ओर बढ़ गई।
    विद्या -   "क्या बात है रमा इधर कहां जा रही हो"?
रमा  -  "मैं कैंटीन में जा रही हूं,चाय पियेंगे और तुमसे कुछ बातें भी करनी हैं वहीं करेंगे चाय पीते हुए"।
  विद्या  -   "क्या बात करनी है?यहीं करते हैं, बोल ना"! 
  "नहीं - नहीं यहां नहीं,बहुत भीड़ है यहाँ। अभी कैंटीन में भीड़ नहीं होगी,वहीं बैठेंगे। कैंटीन में बैठकर रमा ने चाय का आर्डर दिया और उसके बाद विद्या से बात प्रारम्भ किया।
   रमा  -  "विद्या में देख रही हूं तू अपने को बिल्कुल भूलती ही जा रही है। मुझे पहले वाली विद्या चाहिए हंसमुख, मिलनसार, जो दिन भर बातें करती रहती थी। रमेश भैया की तो जिंदगी बस गई,अब तू अपनी जिंदगी क्यों बर्बाद कर रही है। अपने को रमेश भैया की यादों से बाहर निकाल। तुम दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं। तू भी अपनी जिंदगी में आगे बढ़"।
  विद्या   -    'मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकती रमा ! मैं तो वहाँ ही रुक गई हूं,जहां रमेश ने मुझे छोड़ा था। रमेश आगे बढ़ सकते हैं परंतु मैं आगे नहीं बढ़  सकती। मेरा कोई रास्ता अब कहीं नहीं जाता है। मेरा तो रास्ता और मंजिल सब कुछ रमेश ही थे। मेरी मंजिल खो गयी, रास्ता समाप्त हो गया। अब मैं जाऊँ तो कहाँ जाऊँ। परंतु हां तुम्हारी एक बात पर अमल करने का प्रयास मैं अवश्य करूंगी। मैं जिंदगी में वापस आने का प्रयास कर रही हूं, लेकिन मुझे नया रास्ता तलाश करने के लिए मत कहना"।
   विद्या ने बात समाप्त करते हुए इस सम्ब्न्ध में आगे कोई और बात करने से रमा को रोक दिया। वास्तव में विद्या ने जिंदगी में वापसी तो की,परंतु उसका लक्ष्य पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई रह गया था। रमा कई बार विद्या को समझा चुकी थी परंतु विद्या ने उसकी इस बात पर कभी भी ध्यान नहीं दिया और वह पढ़ाई मन से करती रही। कभी-कभी विद्या के घर भी आ जाती। एक दो बार उसने रमेश की पत्नी को भी देखा। रमेश भी कई बार उसके सामने आया,परंतु उसने रमेश से कोई बात नहीं की। विद्या और रमा का स्नातक पूरा हुआ। रमा की शादी की बात चल रही थी। रमा बैंक सेवा की प्रतियोगिता की तैयारी कर रही थी और विद्या ने एम् ए में नामांकन करवाया ।
   रमा की शादी तय हो गई थी। विद्या परिवार सहित रमा के विवाह में आमंत्रित थी,परंतु इस बार वह अपनी सहेली का ब्याह होते हुए भी,उस सहेली के प्रति अगाध प्यार होते हुए भी विद्या ने रमा के घर जाकर रुकने का प्रयास नहीं किया। वह प्रत्येक दिन जाती अवश्य परन्तु फिर वापस आ जाती अपने घर  । देर होने पर वह मोहन भैया को घर छोड़ने के लिए बोल देती,परंतु रमेश की ओर कभी उसने पलट कर देखना भी आवश्यक नहीं समझा। रमेश यह देख कर दु:खी हो जाता। उसने कई बार प्रयास किया उससे बात करने की, परन्तु विद्या ने कभी उसकी किसी बात का प्रत्युत्तर नहीं दिया।
    रमा विवाह के बाद ससुराल चली गई।  वह बीच-बीच में मायके आती रहती। उसकी कई परीक्षाओं का केन्द्र राँची था,इसलिए परीक्षा के लिये भी वह राँची आती। उस समय रमा प्रयास करती कि वह विद्या से कम से कम एक बार अवश्य भेंट कर ले। विद्या भी उस के आने की प्रतीक्षा ही करती रहती है। दोनों सखियां एक-दूसरे से मिलकर अत्यंत प्रसन्न होतीं। रमा से मिलकर विद्या का दैनिक क्रियाकलाप थोड़ा सा तो बदलता। रमा के जाने के बाद वह फिर से अपने को पढ़ाई में ही तल्लीन कर लेती।
    रमा का एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में  चयन हो गया। वह नौकरी में आ गई।
   विद्या ने  एम. ए.पूरा किया और फिर बी.एड.में नामांकन ले लिया। विद्या प्रारंभ से ही मेधावी थी बोर्ड और विश्वविद्यालय की सभी परीक्षाओं में उसका प्राप्तांक प्रतिशत काफी उच्च रहने के कारण शिक्षक प्रशिक्षण के लिए शासकीय महाविद्यालय में ही उसका नामांकन हो गया । बी.एड परीक्षा के बाद उसने एक निजी विद्यालय में नौकरी कर ली।
  बी.एड परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ । इसमें भी विद्या का अस्सी प्रतिशत प्राप्तांक आया। शासकीय विद्यालय में शिक्षकों का चयन होते समय उसे किसी किस प्रकार की परेशानी नहीं हुई। उस की शैक्षणिक योग्यता के बल पर उसका शासकीय विद्यालय में चयन हो गया। वह शासकीय उच्च विद्यालय गोला (रामगढ़ के निकट का एक प्रखंड ) में अपना योगदान सहायक शिक्षिका के रूप में दी।
  स्नातक के बाद से ही विद्या के घरवाले उसके विवाह के लिए उस पर दबाव बनाते रहे,और वह टालती रही,टालती रही। इस बीच उसके दोनों भाइयों का विवाह हो गया था,और अब वीनू के लिए भी कई प्रस्ताव आए थे। उसके माता-पिता चाहते थे विद्या भी विवाह के लिए तैयार हो तो पहले विद्या का विवाह करके फिर वीनू का करें। इस बार विद्या ने स्पष्ट कह दिया वह विवाह नहीं करेगी। उसके घर वालों को भी उसके और रमेश के संबंध के विषय में कई स्रोतों से जानकारी मिल चुकी थी,और वे यह भी जानते थे कि रमेश के कारण ही विद्या कहीं और विवाह करने के लिए तैयार नहीं हो रही है। उन्होंने विद्या को बहुत समझाया परंतु विद्या बिल्कुल ही तैयार नहीं हुई और उसने कह दिया -
  "अभी आप वीनू का विवाह कर दें,मुझे विवाह नहीं करना। मैं आप लोगों के साथ पूरी जिंदगी रहूंगी"।
  उसके दृढ़ निश्चय के आगे उसके माता-पिता ने हार मान लिया।
  रमा के घर नन्हे मुन्ने बच्चे ने जन्म लिया था। उसके प्रसव के समय विद्या ने उसकी बहुत देखभाल की हॉस्पिटल जाकर वह उसके साथ हॉस्पिटल में भी रही। एक प्रातः जब वह रात भर उस के साथ हॉस्पिटल में रहने के बाद प्रातः उसकी माँ के आने पर घर के लिये निकलने लगी,रमेश भी उसके साथ लग गया। रात में वह भी हॉस्पिटल में रुका था और अभी रमा के मां बाबा के आने के बाद वह भी घर जा रहा था।
   उसने विद्या से कहा -  "विद्या चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूं घर तक"।
    विद्या ने कहा -  "न मैं चली जाऊंगी"।
  रमेश -   "प्लीज विद्या मेरी बात मानो,मुझे तुमसे कुछ बात करनी है"।
  विद्या  -  "क्या बात करनी है"?
   रमेश  -  "थोड़ा समय तो दो मुझे,तब तुम्हें बता पाऊंगा। तुम मुझे सिर्फ दस मिनट समय दे दो। यदि तुम्हें लगता है मैंने तुम्हें सच्चे दिल से प्यार किया है तो मुझे थोड़ा समय दे दो"।
   विद्या को लेकर वह मछली घर आया,वहाँ कैंटीन के सामने एक टेबल पर बैठकर चाय का ऑर्डर दिया।
    विद्या -   "आपको जो भी बात करनी है कर लीजिए,मुझे घर जाना है"।
    रमेश -   विद्या क्या तुम मानोगी एक दिन भी ऐसा नहीं बीता जब मैंने तुम्हें याद न किया हो। पिताजी की जिद के आगे और उनकी मरने की धमकी से डरकर मैंने उनकी पसंद की लड़की से शादी तो कर ली,लेकिन मैं अब तक उसे दिल से अपना नहीं पाया हूं। सिर्फ सामाजिक रूप से मैंने उसे अपनाया,परंतु दिल से मैं अभी भी तुम्हारा ही हूं। मैं तुम्हें भूल नहीं पा रहा हूं। तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी ठहर सी गई है,और अब तो पिताजी भी मेरी स्थिति देखकर दु:खी रहते हैं। उन्हें भी अफसोस होता है कि उन्होंने मुझ पर संगीता से शादी के लिए क्यों दबाव डाला। अब उन्हें अफसोस लगता है कि उन्होंने मेरा विवाह तुमसे क्यों नहीं होने दिया"। विद्या क्या अब हम अपनी भूल सुधार कर सकते हैं, क्या हम फिर से अपनी नई जिंदगी प्रारम्भ कर सकते हैं"?
   विद्या -   "किस हैसियत से ? क्या मैं तुम्हारी रक्षिता बन कर रहूँगी"?
   रमेश -  "नहीं विद्या नहीं,कृपया मुझे गाली मत दो। मैं तुमसे भी विवाह करना चाहता हूं,और अब हमारे विवाह के लिये मेरे पिता भी तैयार हैं। तुम मेरी रक्षिता नहीं पत्नी रहोगी। समाज में तुम्हें वही सम्मान मिलेगा जो मेरी पत्नी को मिलता। हम पति-पत्नी रहेंगे,हमारा रिश्ता सार्वजनिक और पवित्र रहेगा। तुम यदि हां कहो तो मैं जी जाऊंगा। हम दोनों के जीवन में फिर से बसंत आ जाएगा"।
   विद्या सोच में पड़ गई उसने कहा -
   "परंतु तुम्हारी दूसरी शादी कैसे हो सकती है,एक पत्नी के रहते"?
   रमेश  -   "उसकी तुम चिंता मत करो। संगीता दूसरी शादी की अनुमति देगी,क्योंकि उसे भी हमारे संबंधों की जानकारी मिल चुकी है। वह भी समझ रही है,मैं उसके साथ खुश नहीं हूं। यदि वह अनुमति नहीं देती है हमारे विवाह के लिये तो मैं उससे तलाक ले लूंगा"।
   विद्या -  "नहीं ऐसा नहीं हो सकता, मैं किसी का घर उजाड़ कर उस पर अपना घर नहीं बसा सकती"।
   रमेश  -  "तुम सिर्फ हां कर दो बाकी सब मैं संभाल लूंगा,किसी को कोई शिकायत नहीं होगी"।
   विद्या -   "मुझे सोचने का अवसर दीजिए"।
   रमेश ने कहा -  "ठीक है तुम जितने दिन चाहो सोच लो,लेकिन इतना जरूर ध्यान देना इस विवाह के हो जाने से हम दोनों की जिंदगी संवर जाएगी।संगीता यदि हमारे विवाह के लिए प्रसन्नता पूर्वक अनुमति देती है तो मैं उसके साथ भी कोई अन्याय नहीं होने दूंगा"।
  रमेश ने विद्या को उसके घर तक छोड़ा। आज उसके घरवालों से भी मिला। उसने उन्हें अपना परिचय रमा के भाई के रूप में दिया। रमा के भाई का नाम सुनते ही उसकी मां ने कहा -  "क्या तुम रमेश हो"?
  रमेश -  "आपने कैसे जाना"?
  विद्या की मां  -  "रमा का एक ही भाई है- मोहन, वो हमारे घर आता था उसे हम अच्छी तरह जानते हैं। रमा के एक और चचेरे भाई के लिए हमने सुना है,तुम्हारा चेहरा हमें पहचाना-पहचाना भी लगा, इसलिए लगा तुम रमेश ही होगे"|
   रमेश  -  "जी आपने सही पहचाना मैं रमेश ही हूं"।
  अब तक विद्या के पिता भी वहां आ गए थे। उन्होंने भी सब कुछ सुन लिया था।
  उन्होंने कहा -   "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे घर आने की। हमारी बेटी की जिंदगी तुमने बर्बाद की। उसे प्यार के सपने दिखाकर किसी और से शादी कर लिए,और आज फिर हमारे घर में आए हो। हम कैसे भूल सकते हैं तुम्हारे धोखे को"।
   रमेश -  "बाबा वास्तव में में आप लोगों से ही मिलने आया हूं। मानता हूँ मैंने अक्षम्य अपराध किया है विद्या के प्रति। मेरे पिता ने आत्महत्या करने की धमकी मुझे दे दी थी। पुत्र धर्म निभाने के लिए मुझे अपनी जिंदगी से समझौता करना पड़ा। और उनकी पसन्द की हुई लड़की से मुझे विवाह करना पड़ा,परंतु मैं कभी भी उसे दिल से अपना नहीं पाया। हमारे संबंध नाममात्र का ही है,इसे देखकर अब मेरे पिता भी दु:खी हैं। और अब उन्होंने कहा है यदि आप लोग तैयार हैं तो वे भी इस  विवाह को अपनी स्वीकृति देते हैं। इसलिए आप से पूछने आया था,क्या आप इस विवाह के लिए अपनी स्वीकृति देंगे ? मैं भी दु:खी हूं और विद्या ने भी विवाह नहीं किया अब तक, वह भी मेरी प्रतीक्षा ही कर रही है। अब हमारी प्रतीक्षा समाप्त कर दीजिए आप,मैं आपसे विनती करता हूँ। मैं आपसे फिर मिलने आऊँगा,यदि आप तैयार होंगे तो मेरे पिताजी रिश्ता लेकर आपके पास आएंगे"।
   कह कर उन्हें प्रणाम कर रमेश निकल गया। विद्या के माता पिता सोच में डूबे रहे क्या करें। एक तरफ विद्या की पूरी जिंदगी थी,दूसरी तरफ रमेश दुहाजू हो जाता। उसकी एक पत्नी के होते वह कैसे उससे अपनी बेटी ब्याह दें,परंतु वे यह भी जान रहे थे विद्या रमेश के अलावे किसी और से विवाह नहीं करेगी। इतने दिन में उन्होंने देख भी लिया था, कितने रिश्ते आए परन्तु विद्या ने सबके लिए  इंकार कर दिया था।
   कथा जारी है। क्या होता है आगे जानने के लिए बने रहें मेरे साथ।
                                 क्रमशः

         निर्मला कर्ण

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4 Comments

Alka jain

27-Jun-2023 07:43 PM

Nice 👍🏼

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Madhumita

27-Jun-2023 03:38 PM

Nice 👍🏼

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Punam verma

06-Jun-2023 09:54 AM

Very nice

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